27 March 2009

ताई अर मोड्डा

आज आपने हम सबके प्यारे ताऊ जी और मोड्डे वाली बात सुनी। लेकिन ताऊ जी को याद नही है कि उन्होंने काफी समय पहले भी इसी मोड्डे को खाना खाने का न्योता दिया था। ताऊ इस मोड्डे को पहचान नही पाये क्योंकि एक तो कई साल पुरानी बात है और उस समय ये मोड्डा मोटा-तगडा हुआ करता था। इसी घटना के बाद ताऊ को मोड्डों से थोडी चिढ सी हो गई थी। अब इस मोड्डे के मरियल हो जाने का भी यही कारण है कि ये शुरू से ही बहुत पेटू है और इसी वजह से लोगों ने इसे न्योता देना छोड दिया।
ये बात मुझे बीनू फिरंगी ने बताई थी, जब मैं और बीनू एक ही स्कूल में पढते थे। लो जी आज आप भी सुन लो, मुझे तो ताई का कोई डर है नही क्योंकि सच बोलने वाले को काहे का डर और ताई को गुस्सा आया तो उतरेगा बीनू पर । मेरा और बीनू का बचपन का हिसाब भी बाकी है वो भी चुकता हो जायेगा ।
हुआ यूं कि एकबार ताऊ ने इस मोड्डे को खाने पर बुलाया। ताई ने पूरी हलवा और खीर बनाई थी। ताई खीर बहुत स्वादिष्ट बनाती है और जिस दिन खीर बनती है सब के मुंह में सुबह से ही पानी आने लगता है। बामन महाराज समय से आ गये, ताऊ-ताई ने नमस्कार किया, आसन पर बिठाया, थाली लगा दी गई, एक बेल्ला (बडा कटोरा) खीर का रख दिया और मोड्डे जी ने जीमना शुरू किया। मोड्डे ने ऐसी खीर पहली बार खाई थी।
मोड्डा - जजमान थोडी खीर और ले आओ ।
ताऊ जी ने एक बडा कटोरा खीर और रख दी।
ताऊ नै पूछा महाराज और क्या लोगे।
मोड्डा- खीर
ताऊ ने एक बडा कटोरा खीर और रख दी।
मोड्डा - खीर बहुत अच्छी बनी है, थोडी और ले आओ
ताऊ ने एक कटोरी खीर और डाल दी
अन्दर रसोई बीनू भी उधम मचाये था कि ताई मुझे मेरी कटोरी खीर जल्दी दो। ताई उसे समझा रही थी कि पहले बामन महाराज ज़ीम लें उसके बाद दूंगी । । ताई सोच रही थी, अब तो बस तीन कटोरी खीर हम तीनों (ताऊ-ताई और बीनू) के लिये ही बच गई है। हम तीनों एक साथ बैठ कर खायेंगें ।
उधर मोड्डे ने ताऊ से और खीर लाने की फरमाईश कर दी। अब बामन महाराज को क्या कहें, ताऊ ने अपने हिस्से की कटोरी ले जाकर ताऊ के सामने रख दी। ताऊ ने सोचा अब तो यो मोड्डा छिक गया होगा। पर ये मोड्डा भी खली के गाम से आया लागै था ।
मोड्डा - थोडी सी खीर और मिल सकती है ?
ताऊ - महाराज आप हलवा या पूरी कुछ और ले लो।
रसोई में ताई (ताऊ से) - इस बामन का तै पेटा-ए ना भरता, और कितना खा-गा ?
अब ताई ने अपनी कटोरी भी ताऊ को दे दी कि जाओ बामन महाराज को मना करना ठीक नही है। और रोते हुए बीनू को समझा रही है कि बस अभी दो मिनट और ठहर जा अभी दे देती हूं।
वो खीर भी खा चुकने के बाद मोड्डा - थोडी सी कसर बाकी रहगी, जै जरा सी खीर और मिल जाती…………?
इब बिचारी भोली ताई आखिरी बची बीनू की खीर की कटोरी भी देन लागी।
इब बीनू के सब्र का बांध भी टूट लिया था, उसने भी फाफट (रोना-चिल्लाना) मचा दिये ।
बीनू - मैं नहीं दूंगा मेरी खीर, मेरी खीर की कटोरी वापस दो
ताई दुखी हो कर जोर-जोर से बामन को सुनाते हुए बोली- बीनू चुप हो जा वरना इस खीर मैं लपेट कै मोड्डे के आगै गेर दूंगी, तनै बेरा है ना वो कितना खा सकै है।

3 comments:

  1. बहुत बढिया भाई. बीनू के काम तो लगवा ही दिये आखिर.:)

    रामराम.

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  2. तभी तो मै किसी को भी नही खिलाता, सीधा ताऊ के घर भेज देता हुं.
    राम राम

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  3. ये मोट मोटे मोडे हरियाणा में भी होते है क्या? मैंने सुना है केवल हरिद्वार में ही होते है |

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